निकाय चुनाव में देरी अब अफसरों को पड़ रहा भारी

निकाय चुनाव में देरी अब अफसरों को पड़ रहा भारी


भोपाल । प्रदेश के नगरीय निकायों में काबिज होने के लिए कांग्रेस सरकार की चुनाव टालने की रणनीति अफसरों पर भारी पडऩे लगी है। कहा जा रहा है कि अफसरों ने अप्रैल में निकाय चुनाव कराने का प्लान बना लिया था। इस सिलसिले में चुनाव आयोग से चर्चा कर ली थी। मगर सरकार ने कह दिया कि अक्टूबर के पहले नहीं होंगे। अब अधिकारी बैकफुट पर हैं। सरकार की कोशिश के खिलाफ हाई कोर्ट में तीन दर्जन से ज्यादा याचिकाएं लगा दी गई हैं। इस पर उच्च न्यायालय में सरकार से 15 दिन में जवाब मांगा है। राज्य में 378 नगरीय निकाय है। इसमें 16 नगर निगम शामिल है। नगर निगम समेत अधिकांश निकायों में भाजपा का कब्जा रहा है। सभी नगर निगमों में भाजपा के महापौर थे। शहर व नगर सरकार में भाजपा का दबदबा खत्म करने के प्रयास प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद ही शुरू कर दिए गए थे। सहूलियत के हिसाब से निगम, अधिनियम में कई बदलाव किए गए।
छग में समय पर चल रही प्रक्रिया
मप्र और छत्तीसगढ़ में लगभग एक साथ कांग्रेस की सरकार बनी थी। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला। दोनों राज्यों की सरकारें ज्यादातर मामलों में एक ही लाइन पर चल रही हैं। मप्र की तरह छग में भी नगरीय निकाय निर्वाचन के नियमों के तमाम बदलाव किए गए।
260 निकायों का कार्यकाल जनवरी में खत्म
प्रदेश के 260 निकायों का कार्यकाल जनवरी में खत्म हो गया। इस महीने भोपाल, इंदौर, जबलपुर समेत 30 शहरों में परिषद पांच साल की अवधि पूरी कर चुकी है। ऐसे में 290 निकायों में चुनाव कराए जा सकते हैं। बाकी 88 में निर्वाचन की प्रक्रिया बाद में की जाएगी। कुछ का कार्यकाल 2023 तक है।
कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
नगरीय निकायों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद प्रशासक नियुक्त करने के खिलाफ इंदौर के पूर्व महापौर कृष्णकुमारी मोघे ने हाईकोर्ट में याचिका लगवाई है। आधार 73वें, 73वें संविधान संशोधन को बनाया है। इनमें प्रावधान है कि परिषदों का कार्यकाल खत्म होने के पहले ही निर्वाचन प्रक्रिया पूरी हो जाना चाहिए। परिषद का चुनाव टालने का अधिकार नहीं है। मोघे के मुताबिक इस पर हाईकोर्ट ने सरकार से 15 दिन में जवाब मांगा है। उनका कहना हे, प्रदेश सरकार को डर है कि सभी निकायों में फिर से भाजपा की परिषद बनेंगी। इस कारण निकायों की निर्वाचन प्रक्रिया टाल रही है। संविधान संशोधन को आधार बना कर 40 से ज्यादा याचिकाएं लगाई हैं।