सूर्य के उदय और अस्त दोनों समय लालिमा होती है, फिर भी दोनों में अंतर
इंदौर। जीवन में व्यक्ति को प्रतीक्षा प्रभात की करनी चाहिए। प्रभात के समय लालिमा होती है। सूर्य को देख नहीं सकते हैं, लेकिन उसकी लालिमा को देख सकते हैं। लालिमा तो सूर्य के अस्त होने के समय भी रहती है, इसलिए कहा जाता है कि सूर्य के उदय और अस्त में लालिमा होती है। फिर भी दोनों लालिमा में अंतर है। एक दिन की शुरुआत तो एक अंत की लालिमा है। ध्यान रखना समवशरण हर जगह नहीं मिलता है।
यह बात आचार्य विद्यासागर महाराज ने शनिवार को धर्मसभा में कही। वे कंचनबाग स्थित समवशरण मंदिर में आयोजित धर्मसभा में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि समवशरण का कोई मालिक नहीं होता है। यहां तक कि दिव्य ध्वनि का आपको स्वयं अहसास होगा, इसलिए कहते हैं कि डूबते हुए सूर्य की पूजा नहीं करते हैं। हम भारतीय संस्कृति के हैं। इसमें डूबते सूर्य की लालिमा का महत्व नहीं है। हमें यहां लगभग दो माह हो गए हैं। यहां की जनता वर्षों से प्रतीक्षा कर रही थी। हमारा कहना है कि हमारी प्रतीक्षा करोगे तो कार्य नहीं होगा। वहां तो एक हनुमान थे, लेकिन यहां अनेक हनुमान हैं। हनुमान बहुत हो सकते हैं, लेकिन उसके राम तो एक ही रहेंगे। भगवान की आराधना हम भक्ति से भाव से करें। इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए। आपका ये उत्साह ऐसा ही बना रहे। ऐसा कार्य किया जाए कि स्वर्ग की राह बने, उसके बाद फिर मोक्ष का मार्ग तो अपने आप मिल ही जाएगा। ब्रह्मचारी सुनील भैया और दयोदय ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष कमल अग्रवाल ने बताया कि इसरो के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक और चंद्रयान-2 में शामिल डॉ. राजमल जैन ने आचार्य और पूरे संघ के दर्शन किए। इस मौके पर अशोक रानी डोशी, मनोज-मुकेश बाकलीवाल, सुधीर बिलाला आदि मौजूद थे। आभार ब्रह्मचारी नितिन भैया और अभय भैया ने माना।
पूरी दुनिया कर रही सौर ऊर्जा के क्षेत्र में कार्य
आचार्य से मिलने आए वैज्ञानिक डॉ. राजमल जैन ने समाजजन से कहा कि इस समय पूरी दुनिया सौर ऊर्जा की दिशा में काम कर रही है। चंद्रयान-2 का लक्ष्य यही था कि वहां की रोशनी का उपयोग बिजली बनाने में किया जाए।