वृक्ष से जुड़ी हमारी संस्कृति, इन्हें सहजें, गोशालाओं को बनाएं आत्मनिर्भर
इंदौर। जूना पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद ने इंदौर आगमन पर नईदुनिया की पहल 'आओ जलाएं कंडों की होली' अभियान का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि वृक्ष से हमारी संस्कृति जुड़ी हुई है। हर वृक्ष-वनस्पति पर किसी न किसी देवी-देवता का वास है। इनका संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है। गोबर के कंडों से ही होली जलाने की परंपरा है। इसके लिए लकड़ियों का इस्तेमाल उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि गाय के गोबर से बने कंडों से होली जलाने से हमारी गोशालाएं आत्मनिर्भर बनेंगी। पर्यावरण का संरक्षण होगा। परमात्मा ने पहले ब्रह्मा और फिर कमल बनाया है। सृष्टि के निर्माण के साथ ही वृक्ष-वनस्पति है। वृक्ष से ही धरती पर प्राण वायु का संचार होता है। वे ही बादलों को बरसने के लिए प्रेरित करते हैं। उनसे ही ईंधन की प्राप्ति होती है।
वैदिक काल में नहीं काटे जाते थे पेड़
महामंडलेश्वर ने कहा कि पेड़ों का संरक्षण करना हमारी संस्कृति है। पेड़ काटना हमारी संस्कृति नहीं है। भारत में अधिक मात्रा में वृक्ष कटे हैं, चाहे वह अज्ञानता में ही कटे हों। वृक्ष परिजन्यों को आकर्षित करते हैं। वे हमें सबकुछ देते हैं। वैदिक काल में पेड़ों को नहीं काटा जाता था। उन्हीं लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता था, जिन्हें वृक्ष ने स्वयं से अलग कर दिया है।
गोबर से बनती है गणेश की आकृति
स्वामी अवधेशानंद ने कहा कि गाय के गोबर पर अनेक प्रयोग हुए हैं। इसका संविदा के रूप में इस्तेमाल लाभदायक है। यज्ञ में गाय के गोबर का इस्तेमाल होता है। देसी गाय के गोबर में यह गुण होता है कि उसमें गणेश की आकृति नजर आती है। अब गाय के गोबर से लकड़ियां भी बनने लगी हैं। गोबर को प्रेस कर लकड़ी बनाई जाती है। इसका अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए।
वृक्ष लगाने से दूर होते हैं दोष
उन्होंने कहा कि वृक्ष लगाना पुणित कार्य है। पितरों के नाम से वृक्ष लगाकर उनकी सेवा करने से पितृ दोष दूर होता है। धरती पर जितने भी संसाधन हैं, वे वृक्षों से प्राप्त होते हैं। इनका संग्रहण और संरक्षण वृक्ष करते हैं। यज्ञ के लिए सामग्री प्राप्त होती है। वृक्ष एक तपस्वी के समान है। इंदौर में समन्वय का भाव दिखता है। यह समन्वय का भाव इंदौर को स्वच्छता में नंबर वन बनाने में नजर आया। यह भाव पर्यावरण संरक्षण के लिए भी लाना चाहिए।