दिव्यांग-कल्याण के लिए तंत्र को और संवेदनशील बनाना जरूरी
इंदौर। एक दृष्टिहीन दिव्यांग ने मुझे बताया कि पीएससी की दोनों एग्जाम और इंटरव्यू क्लीयर करने का बावजूद उसे पोस्टिंग नहीं मिल रही है। उसे इंसाफ दिलाने के लिए मुझे करीब 13 साल तक न्यायिक लड़ाई लड़नी पड़ी। मगर इसका फायदा ये हुआ कि सरकारी कार्यालयों में दिव्यांगों की बाकी सभी पोस्टिंग भी शुरू हो गई। लेकिन मैं ये सोचकर हैरान था कि आखिर कोई तंत्र अपने ही लोगों के प्रति इतना असंवेदनशील कैसे हो सकता है। कोई कैसे दिव्यांगों के जायज हकों पर दशकों तक कुंडली मारे बैठा रह सकता है? मगर सच्चाई यही है। हालांकि बदलते वक्त के साथ लोगों की सोच भी बदल रही है, लेकिन अब भी समूचे तंत्र को दिव्यांगों के लिए पूरी तरह संवेदनशील बनाए के लिए काफी कुछ किए जाने की जरूरत है। ये बात शनिवार दोपहर प्रीतमलाल दुआ सभागार में 'हारा वही जो लड़ा नहीं' विषय पर हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मशहूर एडवोकेट अनिल त्रिवेदी ने कही।
चश्मा पहनने वाले सामान्य तो बैसाखी वाले दिव्यांग क्यों?
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता ख्यात दिव्यांग लेखक ललित कुमार ने कहा कि हम चश्मा पहनने वालों को तो दिव्यांग नहीं मानते हैं, जबकि बैसाखी वालों को दिव्यांग कहते हैं, जबकि सच्चाई ये है कि एक की आंखों में कुछ कमी है तो दूसरे के पांवों में। इसलिए किसी भी दिव्यांग को देखकर उसके प्रति मन में कमतरी का भाव नहीं आना चाहिए क्योंकि हम परफेक्ट कोई नहीं है। हम जिन्हें सामान्य समझते हैं वो भी किसी नजरिए से दिव्यांग हो सकते हैं। यूं भी बीमारी और दुर्घटना तो किसी के साथ कभी भी हो सकती है। जो आज सामान्य होने का अभिमान कर रहे हैं, कल उन्हें भी दिव्यांग का जीवन जीना पड़ सकता है। इसलिए दिव्यांगों की सहायता किसी पुण्य लाभ या एहसान के तौर पर करने के बजाय ये सोचकर करें कि आप इससे समाज को बेहतर बनाने की अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
दिव्यांगों से जुड़ी संस्थाएं मिलकर बनाएं सामूहिक मंच
हिंदी परिवार, पद्मजा प्रोडक्शन और कौटिल्य एकेडमी के संयुक्त तत्वावधान में हुए कार्यक्रम में हेलन केलर, अंधशाला, शासकीय अंधशाला, मूक-बधिर संगठन, मध्यप्रदेश दृष्टिहीन विकलांग कल्याण संघ, महेश दृष्टिहीन कल्याण संघ, अस्थि बाधित बालगृह और युगपुरुष धाम समेत दिव्यांगों की अनेक संस्थाओं के सैकड़ों बच्चों ने हिस्सा लिया। इस मौके पर उन्होंने गायन-वादन, नृत्य और नाट्य विधाओं की रंगारंग प्रस्तुतियां भी दीं। देवास की कवियित्री रिचा कर्पे ने समसामयिक रचनाओं से समां बांधा। मुख्य अतिथि कुलपति डॉ. रेणु जैन ने कहा कि दिव्यांगों को समुचित सुविधाएं प्रदान करने की दिशा में अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है तो विशेष अतिथि अनिल भंडारी ने दिव्यांगों के कल्याण से जुड़ी संस्थाओं को मिलकर एक सामूहिक मंच तैयार करने की बात कही, ताकि उनकी समस्याओं को सही ढंग से सही व्यक्ति के सामने रखा जा सके। कार्यक्रम का संचालन आलोक बाजपेई ने किया।