जब तक संस्कृति और संस्कार हैं तब तक ही धर्म जीवित रहेगाः आराध्य सागर
भोपाल। जीवन में सबसे बड़ी संपत्ति कोई है तो वह संस्कार और संस्कृति है। आज हमारे देश की संस्कृति और संस्कारों को देखकर दूसरे देश विश्व गुरु के रूप में देख रहे हैं। जब तक संस्कृति और सस्कार जीवित हैं, तब तक ही धर्म हमारे अंदर जीवित रहेगा।
यह उद्गार शनिवार को चौक जैन धर्मशाला में धर्मसभा में मुनि साध्य सागर महाराज ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जब तक आध्यात्म की ओर दृष्टि रहती है तो साधक का चिंतन आत्म तत्व की ओर हो जाता है। आध्यात्म केवल जिनालयों और देवालयों तक सीमित नहीं है। यहां तो हमारे सोच और दृष्टिकोण पर निर्भर है। जीवन को सुखी बनाना चाहते हो तो दुख को स्वीकारो। दुख का सत्कार करो। यह मानो दुख मेरी मजबूती का आधार है। दुख से दूर मत भागो। जीवन का असली आनंद लेना है, तो जीवन के प्रति, अपनों के प्रति शिकायती भाव बंद कर दो। किसी से शिकायत मत रखो। किसी से अपेक्षा मत रखो। दोषों का प्रतिकार करने पर ही हमारी दुर्बलताएं कम होंगी।
मूल नायक भगवान का अभिषेक
मुनि आराध्य सागर, संस्कार सागर, साध्य सागर के सानिध्य में चौक जिनालय में विराजमान मूल नायक भगवान आदिनाथ का अभिषेक और अष्ट द्रव्यों से पूजा-अर्चना की गई। आगामी अष्टानिका पर्व के दौरान राजधानी के विभिन्न मंदिरों में श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान एवं अन्य धार्मिक अनुष्ठान होंगे। चौक जैन मंदिर में 2 से 9 मार्च तक श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान का आयोजन किया जा रहा है। विधान के प्रमुख पात्रों का चयन रविवार को मुनि संघ के सानिध्य में होगा। सुबह 8 बजे मुनि संघ के आशीष वचन होंगे