मध्य प्रदेश में पुरुष नसबंदी, पुराने मसले पर कई नए सवाल

मध्य प्रदेश में पुरुष नसबंदी, पुराने मसले पर कई नए सवाल


इंदौर । छोटे से मसले को तूल कैसे मिलता है यह समझना हो तो हाल ही में मध्य प्रदेश में पुरुष नसबंदी के लक्ष्य पूरे करने न कर पाने वाले बहु-उद्देश्यीय कार्यकर्ताओं के लिए कड़ी सजा के प्रावधान पर मचे बवाल को याद करना काफी होगा। इसके विरोध में राजनीतिक हंगामे का स्वर और कड़ा होता, उसमें और कई कर्कश स्वर शामिल होते इससे पहले ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की मप्र मिशन संचालक को हटा दिया गया। आदेश वापस ले लिया गया। इस घटना ने परिवार कल्याण कार्यक्रमों पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। यह सही है कि नसबंदी के लिए लोगों पर दबाव नहीं बल्कि उन्हें प्रेरित किया जाना ही श्रेयस्कर है लेकिन मध्य प्रदेश में पुरुष नसबंदी का प्रतिशत एक से भी कम होना समाज व परिवार कल्याण की दिशा में प्रदेश की बदहाली को उजागर करता है। साथ ही परिवार और दांपत्य जीवन में संतान नियोजन में भी महिला असमानता को उजागर करता है। प्रस्तुत है इस गंभीर मुद्दे पर प्रदेश के तीन विशेषज्ञों से खास बातचीत...


 

पुरुष नसबंदी के आंकड़ों में आश्चर्यजनक गिरावट आई है। जबकि इन सालों में जागरूकता तो हर क्षेत्र में बढ़ी है। आपके नजरिए से इसकी क्या वजह है?


जवाब : फायदों के बारे में अच्छे से प्रचार-प्रसार नहीं किया गया है। प्रशिक्षित डॉक्टरों की कमी है। नए डॉक्टरों को पुरुष नसबंदी का प्रशिक्षण नहीं दिया जा रहा है।


पुरुष नसबंदी को लेकर इतनी अनिच्छा क्यों? महिला नसबंदी की तुलना में यह कितनी आसान है? परिवार एक इकाई के रूप में यह पुरुष के लिए किस मायने में आसान है...समय और शरीर की दृष्टि से। क्या महिलाओं पर ही इसका भार डाल देना उनकी समानता के अधिकार का अतिक्रमण नहीं करता?


 

जवाब : पुरुष नसबंदी काफी आसान है। 10 मिनट में ऑपरेशन हो जाता है। महिलाओं के पेट के अंदर दूरबीन डालना पड़ता है, जबकि पुरुष नसबंदी बाहरी प्रक्रिया है। यह सिर्फ महिला की जिम्मेदारी नहीं है। वह बच्चे को जन्म देकर पालती है तो पुरुष नसबंदी करा परिवार कल्याण में सहभागी बन सकता है।


मप्र में 6000 बहु-उद्देश्यीय कार्यकर्ता हैं। इनका मुख्य काम परिवार कल्याण कार्यक्रमों को संचालित करना है। जबकि वित्त वर्ष, 2019-20 में पुरुष नसबंदी महिलाओं के मुकाबले एक फीसदी से कम है।


जवाब : बहु-उद्देश्यीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का मूल काम लोगों को परिवार कल्याण के लिए प्रेरित करना है। लोगों को समझाएं कि पुरुष नसबंदी महिला नसबंदी से कितना आसान है।


बढ़ती आबादी के मद्देनजर मप्र की स्थिति। मप्र में जनसंख्या नियंत्रण कितना जरूरी। भले ही इस मुद्दे पर कितनी भी राजनीति हो लेकिन किन कड़े कदमों की जरूरत है?


जवाब : मध्य प्रदेश ही नहीं पूरे देश में गरीबी है। माल्थस का सिद्धांत है कि जिस अनुपात में जनसंख्या बढ़ती है उस अनुपात में संसाधन नहीं बढ़ते। अशिक्षा, गरीबी की बड़ी वजह ज्यादा जनसंख्या है।


आपके गहन अनुभव से इस स्थिति को बेहतर करने के लिए क्या सुझाव हो सकते हैं। परिवार कल्याण कार्यकर्ता किन बातों का ध्यान रखें और आम लोग भी कैसे जागरूक हों। महिला सशक्तीकरण के लिए यह कितना बुरा और इसे दुरुस्त करने के क्या उपाय हो सकते हैं?


जवाब : छोटा परिवार-सुखी परिवार का प्रचार-प्रसार करना चाहिए। नसबंदी के लिए ज्यादा से ज्यादा डॉक्टर तैयार किए जाएं। लोगों को बताएं कि गर्भ में दो साल का अंतर रखने से मातृ मृत्यु दर में 30 फीसदी व शिशु मृत्यु दर में 15 फीसदी की कमी लाई जा सकती है।


डॉ. बीएस ओहरी पूर्व संचालक, परिवार कल्याण, स्वास्थ्य विभाग, भोपाल (डॉ. ओहरी के संचालक रहते हुए वर्ष 2015 में 10 हजार से ज्यादा पुरुष नसंबदी मप्र में हुई थी। मध्य प्रदेश को इस मामले में पुरस्कार भी दिया गया था।)